आज 15 अगस्त शनिवार से भारत भर में श्वेताम्बर जैन समाज के आठ दिवसीय महान पर्व पर्युषण का शंखनाद हो गया है । पर्युषण जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘परि’ और ‘ऊषण’। परि याने पाप और ऊषण याने उठना । अपने जीवन के समस्त पापो को छोड़कर उनसे ऊपर उठना ही पर्युषण है। इसीलिए इसे पर्वाधिराज की उपाधि दी है। आठ दिवसीय इस लोकोत्तर पर्व के अंतर्गत खाना, पीना, सोना, मिलना, वचन, विलास के स्थान पर त्याग, वैराग्य, भक्ति, सत्संग आदि धार्मिक कार्य कलापो का आत्मसात होगा। प्रभु एवं प्रभु के मंदिर सजेंगे। प्रभु भक्ति का वातावरण निर्मित होगा। समाजजन व्रत उपवास करेंगे तथा हरी वनस्पतियो एवं रात्रि भोजन का त्याग करेंगे। इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते प्रशासन के सभी निर्देशो का पालन करते हुए पूर्ण सावधानी के साथ जैन समाजजन यह महापर्व मनाएंगे। आत्म शुद्धि के इस महापर्व की आत्म मंथन करके स्वआत्मा में रमण करते हुए आराधना की जाती हे। पयूषर्ण पर्व कार्यक्रम के अंतर्गत इस वर्ष प्रभु महावीर स्वामी जन्म वांचन 19 अगस्त बुधवार एवं संवत्सरी महापर्व 22 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा। क्षमापना पर्व 23 अगस्त रविवार को होगा। पर्युषण मात्र जैनों का पर्व नहीं है, यह एक सार्वभौम पर्व है, मानव मात्र का पर्व है। पूरे विश्व के लिए यह एक उत्तम और उत्कृष्ट पर्व है, क्योंकि इसमें आत्मा की उपासना की जाती है। संपूर्ण संसार में यही एक ऐसा उत्सव या पर्व है जिसमें आत्मरत होकर व्यक्ति आत्मार्थी बनता है व अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का सद्प्रयास करता है। संपूर्ण जैन समाज का यह महाकुंभ पर्व है। यह जैन एकता का प्रतीक पर्व है। जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते हैं। संपूर्ण जैन समाज इस पर्व के अवसर पर जागृत एवं साधनारत हो जाता है। दिगंबर परंपरा में इसकी ‘दशलक्षण पर्व’ के रूप में पहचान है। यह पर्व 8 दिन तक मनाया जाता है जिसमें किसी के भीतर में ताप, उत्ताप पैदा हो गया हो, किसी के प्रति द्वेष की भावना पैदा हो गई हो तो उसको शांत करने का यह पर्व है।पर्युषण पर्व अंतरआत्मा की आराधना का पर्व है, आत्मशोधन का पर्व है, निद्रा त्यागने का पर्व है। सचमुच में पर्युषण पर्व एक ऐसा सवेरा है, जो निद्रा से उठाकर जागृत अवस्था में ले जाता है। अज्ञानरूपी अंधकार से ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाता है। तो जरूरी है प्रमादरूपी नींद को हटाकर इन 8 दिनों विशेष तप, जप, स्वाध्याय की आराधना करते हुए अपने आपको सुवासित करते हुए अंतरआत्मा में लीन हो जाएं जिससे हमारा जीवन सार्थक व सफल हो पाएगा। ‘क्षमा वीरो का भूषण है’- महान व्यक्ति ही क्षमा ले व दे सकते हैं। पर्युषण पर्व आदान-प्रदान का पर्व है। इस दिन सभी अपनी मन की उलझी हुईं ग्रंथियों को सुलझाते हैं, अपने भीतर की राग-द्वेष की गांठों को खोलते हैं, वे एक-दूसरे से गले मिलते हैं, पूर्व में हुई भूलों को क्षमा के द्वारा समाप्त करते हैं व जीवन को पवित्र बनाते हैं। पर्युषण महापर्व का समापन मैत्री दिवस के रूप में आयोजित होता है, जिसे ‘क्षमापना दिवस’ भी कहा जाता है। इस तरह से पर्युषण महापर्व एवं क्षमापना दिवस- ये एक-दूसरे को निकटता में लाने का पर्व है। यह एक-दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है।


